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प्रति॑ मे॒ स्तोम॒मदि॑तिर्जगृभ्यात्सू॒नुं न मा॒ता हृद्यं॑ सु॒शेव॑म्। ब्रह्म॑ प्रि॒यं दे॒वहि॑तं॒ यदस्त्य॒हं मि॒त्रे वरु॑णे॒ यन्म॑यो॒भु ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prati me stomam aditir jagṛbhyāt sūnuṁ na mātā hṛdyaṁ suśevam | brahma priyaṁ devahitaṁ yad asty aham mitre varuṇe yan mayobhu ||

पद पाठ

प्रति॑। मे॒। स्तोम॑म्। अदि॑तिः। ज॒गृ॒भ्या॒त्। सू॒नुम्। न। मा॒ता। हृद्य॑म्। सु॒ऽशेव॑म्। ब्रह्म॑। प्रि॒यम्। दे॒वऽहि॑तम्। यत्। अस्ति॑। अ॒हम्। मि॒त्रे। वरु॑णे। यत्। म॒यः॒ऽभु ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:42» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (अदितिः) पूर्ण सुख की देनेवाली (माता) माता (हृद्यम्) हृदय के प्रिय (सूनुम्) सन्तान के (न) सदृश जो (मे) मेरी (स्तोमम्) स्तुति को (प्रति, जगृभ्यात्) अत्यन्त ग्रहण करे और (यत्) जिस (सुशेवम्) उत्तम प्रकार सुख देनेवाले (प्रियम्) सुन्दर और प्रीतिकारक तथा (देवहितम्) देव अर्थात् विद्वानों के लिये हितकारक (ब्रह्म) सत्, चित् और आनन्दस्वरूप चेतन (अस्ति) है और (यत्) जो (मित्रे) प्राणवायु और (वरुणे) उदान वायु में (मयोभु) सुखकारक है, उसको (अहम्) मैं इष्ट मानता हूँ, वैसे आप लोग भी मानिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो जगदीश्वर प्रेमभाव से स्तुति किया गया और जो उसकी आज्ञा का सेवन किया हो तो वह जैसे कृपा करनेवाली माता शीघ्र उत्पन्न हुए बालक पर वैसे धार्मिक उपासक जन पर दया करता है, जो जगदीश्वर सर्वत्र व्याप्त हुआ भी प्राणादिकों में पाया जाता है, उस सब काल में सुख देनेवाले परमात्मा की हम उपासना करें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! अदितिर्माता हृद्यं सूनुं न यो मे स्तोमं प्रति जगृभ्याद्यत्सुशेवं प्रियं देवहितं ब्रह्मास्ति यच्च मित्रे वरुणे मयोभ्वस्ति तदहमिष्टं मन्ये तथा यूयमपि मन्यध्वम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रति) (मे) मम (स्तोमम्) स्तुतिम् (अदितिः) अखण्डसुखप्रदा (जगृभ्यात्) भृशं गृह्णीयात् (सूनुम्) अपत्यम् (न) इव (माता) (हृद्यम्) हृदयस्य प्रियम् (सुशेवम्) सुसुखकरम् (ब्रह्म) सच्चिदानन्दलक्षणं चेतनम् (प्रियम्) कमनीयं प्रीतिकरम् (देवहितम्) देवेभ्यो विद्वद्भ्यो हितकारि (यत्) (अस्ति) (अहम्) (मित्रे) प्राणे (वरुणे) उदाने (यत्) (मयोभुः) सुखं भावुकम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यो जगदीश्वरः प्रेमभावेन स्तुतस्तदाऽऽज्ञासेवनं कृतं चेत्तर्हि स यथा कृपायमाणा माता सद्यो जातं बालकमिव धार्मिकमुपासकमनुगृह्णाति, यो जगदीश्वरः सर्वत्र व्याप्तोऽपि प्राणादिषु प्राप्यते तं सर्वदा सुखप्रदं वयमुपास्महि ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्या जगदीश्वराची प्रेमाने (भक्ती) स्तुती केली जाते व त्याच्या आज्ञेचे पालन केले जाते तेव्हा जशी कृपा करणारी माता जन्मलेल्या बाळावर दया (प्रेम) करते. तसा परमेश्वर धार्मिक उपासकांवर दया करतो. जगदीश्वर सर्वत्र व्यापक असून प्राण इत्यादीमध्येही आहे सदैव सुख देणाऱ्या त्या परमेश्वराची आपण उपासना करावी ॥ २ ॥